ख़्वाहिशों ने दिल को तस्वीर-ए-तमन्ना कर दिया
इक नज़र ने आइने में अक्स गहरा कर दिया
Faiz Ahmad Faiz
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Mir Taqi Mir
Habib Jalib
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कौन उठाए इश्क़ के अंजाम की जानिब नज़र
ग़म-ए-दौराँ को बड़ी चीज़ समझ रक्खा था
ग़लत-फ़हमियों में जवानी गुज़ारी
तुम ने रस्म-ए-जफ़ा उठा दी है
जुनूँ में गुम हुए होश्यार हो कर
जवानी ज़िंदगानी है न तुम समझे न हम समझे
पस्ती ने बुलंदी को बनाया है हक़ीक़त
अपने जलने में किसी को नहीं करते हैं शरीक
आप के लब पे और वफ़ा की क़सम
उजाला कर के ज़ुल्मत में घिरा हूँ
दोस्तों से ये कहूँ क्या कि मिरी क़द्र करो
चला-चल मोहलत-ए-आराम क्या है