ग़म-ए-दौराँ को बड़ी चीज़ समझ रक्खा था
काम जब तक न पड़ा था ग़म-ए-जानाँ से हमें
Mir Taqi Mir
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रवाँ है क़ाफ़िला-ए-रूह-ए-इलतिफ़ात अभी
बाल-ओ-पर की जुम्बिशों को काम में लाते रहो
इश्क़ आता न अगर राह-नुमाई के लिए
आईना बन जाइए जल्वा-असर हो जाइए
मंज़िल पे पहुँचने का मुझे शौक़ हुआ तेज़
काम आएगी मिज़ाज-ए-इश्क़ की आशुफ़्तगी
जुनूँ में गुम हुए होश्यार हो कर
इस रंग में अपने दिल-ए-नादाँ से गिला है
क्या मआल-ए-दहर है मेरी मोहब्बत का मआल
जवानी ज़िंदगानी है न तुम समझे न हम समझे
ग़ालिबन मेरे अलावा कोई गुज़रा भी नहीं
जो देखिए तो करम इश्क़ पर ज़रा भी नहीं