बाल-ओ-पर की जुम्बिशों को काम में लाते रहो
ऐ क़फ़स वालो क़फ़स से छूटना मुश्किल सही
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Anwar Masood
Habib Jalib
Rahat Indori
Wasi Shah
Gulzar
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(553) Peoples Rate This
समझेगा आदमी को वहाँ कौन आदमी
इक रोज़ छीन लेगी हमीं से ज़मीं हमें
कमाल-ए-ज़ब्त में यूँ अश्क-ए-मुज़्तर टूट कर निकला
आईना बन जाइए जल्वा-असर हो जाइए
जुनूँ में गुम हुए होश्यार हो कर
कुफ़्र ओ इस्लाम के झगड़े को चुका दो साहब
ऐसा भी कोई ग़म है जो तुम से नहीं पाया
ग़लत-फ़हमियों में जवानी गुज़ारी
अश्क-बारी नहीं फ़ुर्क़त में शरर-बारी है
यगाना बन के हो जाए वो बेगाना तो क्या होगा
दोस्तों से ये कहूँ क्या कि मिरी क़द्र करो
जवानी ज़िंदगानी है न तुम समझे न हम समझे