कुफ़्र ओ इस्लाम के झगड़े को चुका दो साहब
जंग आपस में करें शैख़ ओ बरहमन कब तक
Jaun Eliya
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
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Parveen Shakir
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Gulzar
Anwar Masood
Wasi Shah
Javed Akhtar
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टुकड़े हुए थे दामन-ए-हस्ती के जिस क़दर
गए थे नक़्द-ए-गिराँ-माया-ए-ख़ुलूस के साथ
अच्छा हुआ कि सब दर-ओ-दीवार गिर पड़े
अश्क-बारी नहीं फ़ुर्क़त में शरर-बारी है
तुझ से दामन-कशाँ नहीं हूँ मैं
कब तक नजात पाएँगे वहम ओ यक़ीं से हम
क्या मआल-ए-दहर है मेरी मोहब्बत का मआल
रौशनी ख़ुद भी चराग़ों से अलग रहती है
कब तक यक़ीन इश्क़ हमें ख़ुद न आएगा
सोना था जितना अहद-ए-जवानी में सो लिए
अजल होती रहेगी इश्क़ कर के मुल्तवी कब तक
जवानी ज़िंदगानी है न तुम समझे न हम समझे