गए थे नक़्द-ए-गिराँ-माया-ए-ख़ुलूस के साथ
ख़रीद लाए हैं सस्ती अदावतें क्या क्या
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
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Rahat Indori
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Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Gulzar
Habib Jalib
Wasi Shah
Parveen Shakir
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आईना बन जाइए जल्वा-असर हो जाइए
पूछें तिरे ज़ुल्म का सबब हम
जो हमारे सफ़र का क़िस्सा है
बाल-ओ-पर की जुम्बिशों को काम में लाते रहो
जुनूँ में गुम हुए होश्यार हो कर
सौ बार जिस को देख के हैरान हो चुके
उलझनों में कैसे इत्मीनान-ए-दिल पैदा करें
है जो दरवेश वो सुल्ताँ है ये मा'लूम हुआ
क्या मआल-ए-दहर है मेरी मोहब्बत का मआल
हुजूम-ए-ग़म है क़ल्ब ग़म-ज़दा है
जो देखिए तो करम इश्क़ पर ज़रा भी नहीं
पूरी मिरे जुनूँ की ज़रूरत न कर सके