कब तक नजात पाएँगे वहम ओ यक़ीं से हम
उलझे हुए हैं आज भी दुनिया ओ दीं से हम
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Habib Jalib
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Gulzar
Anwar Masood
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(636) Peoples Rate This
हुजूम-ए-ग़म है क़ल्ब ग़म-ज़दा है
जो हमारे सफ़र का क़िस्सा है
रौशनी ख़ुद भी चराग़ों से अलग रहती है
तुम ने रस्म-ए-जफ़ा उठा दी है
अपने जलने में किसी को नहीं करते हैं शरीक
अज़ल से आज तक सज्दे किए और ये नहीं सोचा
हवस-परस्त अदीबों पे हद लगे कोई
ग़लत-फ़हमियों में जवानी गुज़ारी
सौ बार जिस को देख के हैरान हो चुके
कसरत-ए-जल्वा को आईना-ए-वहदत समझो
तुझ से दामन-कशाँ नहीं हूँ मैं
भीड़ तन्हाइयों का मेला है