अपने जलने में किसी को नहीं करते हैं शरीक
रात हो जाए तो हम शम्अ बुझा देते हैं
Parveen Shakir
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Mohsin Naqvi
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Javed Akhtar
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आप आए हैं सो अब घर में उजाला है बहुत
पूछें तिरे ज़ुल्म का सबब हम
आईना बन जाइए जल्वा-असर हो जाइए
जुनूँ में गुम हुए होश्यार हो कर
ग़लत-फ़हमियों में जवानी गुज़ारी
कसरत-ए-जल्वा को आईना-ए-वहदत समझो
हवस-परस्त अदीबों पे हद लगे कोई
इस शान का आशुफ़्ता-ओ-हैराँ न मिलेगा
इश्क़ आता न अगर राह-नुमाई के लिए
ग़ालिबन मेरे अलावा कोई गुज़रा भी नहीं
मंज़िल पे पहुँचने का मुझे शौक़ हुआ तेज़
हुस्न जो रंग ख़िज़ाँ में है वो पहचान गया