आप आए हैं सो अब घर में उजाला है बहुत
कहिए जलती रहे या शम्अ बुझा दी जाए
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Gulzar
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(537) Peoples Rate This
पस्ती ने बुलंदी को बनाया है हक़ीक़त
रवाँ है क़ाफ़िला-ए-रूह-ए-इलतिफ़ात अभी
तुम ने रस्म-ए-जफ़ा उठा दी है
कौन उठाए इश्क़ के अंजाम की जानिब नज़र
ग़म-ए-दौराँ को बड़ी चीज़ समझ रक्खा था
इश्क़ आता न अगर राह-नुमाई के लिए
ऐसा भी कोई ग़म है जो तुम से नहीं पाया
कब तक यक़ीन इश्क़ हमें ख़ुद न आएगा
इस शान का आशुफ़्ता-ओ-हैराँ न मिलेगा
जुनूँ में गुम हुए होश्यार हो कर
कमाल-ए-ज़ब्त में यूँ अश्क-ए-मुज़्तर टूट कर निकला
समझेगा आदमी को वहाँ कौन आदमी