आप के लब पे और वफ़ा की क़सम
क्या क़सम खाई है ख़ुदा की क़सम
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तुझ से दामन-कशाँ नहीं हूँ मैं
उस को भी हम से मोहब्बत हो ज़रूरी तो नहीं
इस शान का आशुफ़्ता-ओ-हैराँ न मिलेगा
हवस-परस्त अदीबों पे हद लगे कोई
उस का वादा ता-क़यामत कम से कम
कौन उठाए इश्क़ के अंजाम की जानिब नज़र
ग़ालिबन मेरे अलावा कोई गुज़रा भी नहीं
सौ बार जिस को देख के हैरान हो चुके
अपने जलने में किसी को नहीं करते हैं शरीक
अजल होती रहेगी इश्क़ कर के मुल्तवी कब तक
ख़्वाहिशों ने दिल को तस्वीर-ए-तमन्ना कर दिया
दोस्तों से ये कहूँ क्या कि मिरी क़द्र करो