हवस-परस्त अदीबों पे हद लगे कोई
तबाह करते हैं लफ़्ज़ों की इस्मतें क्या क्या
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
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Allama Iqbal
Gulzar
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Rahat Indori
Habib Jalib
Jaun Eliya
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पूछें तिरे ज़ुल्म का सबब हम
अपने जलने में किसी को नहीं करते हैं शरीक
इक रोज़ छीन लेगी हमीं से ज़मीं हमें
तुम ने रस्म-ए-जफ़ा उठा दी है
जब इश्क़ था तो दिल का उजाला था दहर में
जो हमारे सफ़र का क़िस्सा है
टुकड़े हुए थे दामन-ए-हस्ती के जिस क़दर
कुफ़्र ओ इस्लाम के झगड़े को चुका दो साहब
रौशनी ख़ुद भी चराग़ों से अलग रहती है
तुझ से दामन-कशाँ नहीं हूँ मैं
कौन उठाए इश्क़ के अंजाम की जानिब नज़र
आईना बन जाइए जल्वा-असर हो जाइए