कसरत-ए-जल्वा को आईना-ए-वहदत समझो

कसरत-ए-जल्वा को आईना-ए-वहदत समझो

जिस की सूरत नज़र आए वही सूरत समझो

ग़म को ग़म और न मुसीबत को मुसीबत समझो

जो दर-ए-दोस्त से मिल जाए ग़नीमत समझो

झुक के जो सैंकड़ों फ़ित्नों को जगा सकती हैं

वो निगाहें अगर उट्ठें तो क़यामत समझो

नहीं होते हैं रिया-कारी के सज्दे मुझ से

मैं अगर सर न झुकाऊँ तो इबादत समझो

रफ़्ता रफ़्ता मिरी ख़ुद्दारी से वाक़िफ़ होगे

अभी कुछ दिन मिरे अंदाज़-ए-मोहब्बत समझो

जल्वा देखोगे कहाँ दिल के अलावा अपना

मिरे टूटे हुए आईने की क़िस्मत समझो

कम नहीं दूर असीरी में सहारा ये भी

क़ैद में याद-ए-नशेमन को ग़नीमत समझो

ख़ूब समझाया है ये कातिब-ए-क़िस्मत ने हमें

जो मयस्सर हो जहाँ में उसे क़िस्मत समझो

हम-जफ़ाओं को भी अंदाज़-ए-इनायत समझें

और तुम शुक्र-ए-सितम को भी शिकायत समझो

मेरी आँखों में अभी अश्क बहुत बाक़ी हैं

तुम जो महफ़िल में चराग़ों की ज़रूरत समझो

ऐ 'सबा' क्यूँ हो दर-ए-ग़ैर पे तौहीन-तलब

अपने ही दर को हमेशा दर-ए-दौलत समझो

(432) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Saba Akbarabadi. is written by Saba Akbarabadi. Complete Poem in Hindi by Saba Akbarabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.