अश्क Poetry (page 17)

आफ़्ताब अब नहीं निकलने का

हातिम अली मेहर

हम रातों को उठ उठ के जिन के लिए रोते हैं

हसरत जयपुरी

वफ़ा के हैं ख़्वान पर निवाले ज़े-आब अव्वल दोअम ब-आतिश

हसरत अज़ीमाबादी

इश्क़ में गुल के जो नालाँ बुलबुल-ए-ग़मनाक है

हसरत अज़ीमाबादी

हुस्न को उस के ख़त का दाग़ लगा

हसरत अज़ीमाबादी

मौजा-ए-अश्क से भीगी न कभी नोक-ए-क़लम

हसन नईम

वो कज-निगाह न वो कज-शिआ'र है तन्हा

हसन नईम

एक भी हर्फ़ न था ख़ुश-ख़बरी का लिक्खा

हसन नईम

गए दिनों में रोना भी तो कितना सच्चा था

हसन अकबर कमाल

क्या होता है ख़िज़ाँ बहार के आने जाने से

हसन अकबर कमाल

दिल में तिरे ख़ुलूस समोया न जा सका

हसन अकबर कमाल

वो दिल में और क़रीब-ए-रग-ए-गुलू भी मिले

हनीफ़ अख़गर

नफ़स नफ़स ने उड़ाईं हवाइयाँ क्या क्या

हनीफ़ अख़गर

इतना सुकून तो ग़म-ए-पिन्हाँ में आ गया

हनीफ़ अख़गर

इश्क़ जब मंज़िल-ए-आख़िर से गुज़रता होगा

हनीफ़ अख़गर

हुज्रा-ए-ख़्वाब से बाहर निकला

हम्माद नियाज़ी

फ़रेब दे न कहीं अज़्म-ए-मुस्तक़िल मेरा

हामिद इलाहाबादी

चर्चा हमारा इश्क़ ने क्यूँ जा-ब-जा किया

हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा

आईना देखता हूँ नज़र आ रहे हो तुम

हैरत गोंडवी

लफ़्ज़ तेरी याद के सब बे-सदा कर आए हैं

हैदर क़ुरैशी

ज़िंदे वही हैं जो कि हैं तुम पर मरे हुए

हैदर अली आतिश

वहशी थे बू-ए-गुल की तरह इस जहाँ में हम

हैदर अली आतिश

सब्ज़ा बाला-ए-ज़क़न दुश्मन है ख़ल्क़ुल्लाह का

हैदर अली आतिश

रफ़्तगाँ का भी ख़याल ऐ अहल-ए-आलम कीजिए

हैदर अली आतिश

मुंतज़िर था वो तो जुस्त-ओ-जू में ये आवारा था

हैदर अली आतिश

मय-ए-गुल-रंग से लबरेज़ रहें जाम सफ़ेद

हैदर अली आतिश

मगर उस को फ़रेब-ए-नर्गिस-ए-मस्ताना आता है

हैदर अली आतिश

काबा ओ दैर में है किस के लिए दिल जाता

हैदर अली आतिश

इंसाफ़ की तराज़ू में तौला अयाँ हुआ

हैदर अली आतिश

फ़रेब-ए-हुस्न से गब्र-ओ-मुसलमाँ का चलन बिगड़ा

हैदर अली आतिश

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