क़ानून जैसे खो चुका सदियों का ए'तिमाद
अब कौन देखता है ख़ता का है रुख़ किधर
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Anwar Masood
Allama Iqbal
Gulzar
Wasi Shah
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(400) Peoples Rate This
झील के पार धनक-रंग समाँ है कैसा
शफ़क़ सी फिर कोई उतरी है मुझ में
भूल जाने का मुझे मशवरा देने वाले
पलक पलक सैल-ए-ग़म अयाँ है न कोई आहट न कोई हलचल
मैं अजनबी हूँ मगर तुम कभी जो सोचोगे
चाँद की कश्ती सजी है और मैं
रात के लम्हात ख़ूनी दास्ताँ लिखते रहे
कितने ज़ेहनों को कर गया गुमराह
वो गुलाबी बादलों में एक नीली झील सी
हर शख़्स अपनी अपनी जगह यूँ है मुतमइन
शफ़क़ का रंग का ख़ुशबू का ख़्वाब था मैं भी