जो हर क़दम पे मिरे साथ साथ रहता था
ज़रूर कोई न कोई तो वास्ता होगा
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ताबीर इस की क्या है धुआँ देखता हूँ मैं
पहला ख़ुत्बा
धुआँ उठ रहा है
ये भी नहीं बीमार न थे
ऊँची उड़ान के लिए पर तौलते थे हम
किस की तलाश है हमें किस के असर में हैं
धूप के रथ पर हफ़्त अफ़्लाक
हमें भी आज ही करना था इंतिज़ार उस का
ये और बात कि तुम भी यहाँ के शहरी हो
हमें ख़बर थी ज़बाँ खोलते ही क्या होगा
दयार-ए-ख़्वाब
अजब रंग आँखों में आने लगे