हमें भी आज ही करना था इंतिज़ार उस का
उसे भी आज ही सब वादे भूल जाने थे
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क़िस्सा-गो
जिस से मिल बैठे लगी वो शक्ल पहचानी हुई
किस की तलाश है हमें किस के असर में हैं
बादबाँ खोलेगी और बंद-ए-क़बा ले जाएगी
पहला ख़ुत्बा
बुरा मत मान इतना हौसला अच्छा नहीं लगता
पहले ही क्या कम तमाशे थे यहाँ
हवाएँ तेज़ थीं ये तो फ़क़त बहाने थे
फ़रियादी मातम
पनाहें ढूँढ के कितनी ही रोज़ लाता है
ठिकाने यूँ तो हज़ारों तिरे जहान में थे