ख़्वाब जितने देखने हैं आज सारे देख लें
क्या भरोसा कल कहाँ पागल हवा ले जाएगी
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घरौंदे ख़्वाबों के सूरज के साथ रख लेते
ये बात याद रखेंगे तलाशने वाले
एक मंज़र में लिपटे बदन के सिवा
ख़बर तो दूर अमीन-ए-ख़बर नहीं आए
है इंतिज़ार मुझे जंग ख़त्म होने का
क़िस्सा-गो
आँखों के बंद बाब लिए भागते रहे
नजात
दिल देता है हिर-फिर के उसी दर पे सदाएँ
तुझ को भी क्यूँ याद रखा
तू कभी इस शहर से हो कर गुज़र
घर की हद में सहरा है