तुझ को भी क्यूँ याद रखा
सोच के अब पछताते हैं
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ये और बात कि तुम भी यहाँ के शहरी हो
सहीह कह रहे हो
एक मंज़र में लिपटे बदन के सिवा
घर में और बहुत कुछ था
ख़्वाब जितने देखने हैं आज सारे देख लें
तुझे भुलाने की कोशिश में फिर रहे थे कि हम
भीनी ख़ुशबू सुलगती साँसों में
ये बात याद रखेंगे तलाशने वाले
ताबीर इस की क्या है धुआँ देखता हूँ मैं
आँखों के सामने कोई मंज़र नया न था
कहा था तुम से कि ये रास्ता भी ठीक नहीं
परछाइयाँ पकड़ने वाले