तलाश जिन को हमेशा बुज़ुर्ग करते रहे
न जाने कौन सी दुनिया में वो ख़ज़ाने थे
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हमें सफ़र की अज़िय्यत से फिर गुज़रना है
इतना क्यूँ शरमाते हैं
न इब्तिदा की ख़बर और न इंतिहा मालूम
सदाएँ क़ैद करूँ आहटें चुरा ले जाऊँ
किस की तलाश है हमें किस के असर में हैं
आवारा परछाइयाँ
हमारे बारे में क्या क्या न कुछ कहा होगा
हमें भी आज ही करना था इंतिज़ार उस का
घर की हद में सहरा है
बदन भीगेंगे बरसातें रहेंगी
किसे बताते कि मंज़र निगाह में क्या था
नजात