तेरी ख़बर मिल जाती थी
शहर में जब अख़बार न थे
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ख़ुदा की जगह ख़ाली है
तय-शुदा मौसम
तुम ने लिक्खा है लिखो कैसा हूँ मैं
न इब्तिदा की ख़बर और न इंतिहा मालूम
घर की हद में सहरा है
कहा था तुम से कि ये रास्ता भी ठीक नहीं
बुरा मत मान इतना हौसला अच्छा नहीं लगता
बदन भीगेंगे बरसातें रहेंगी
आवारा परछाइयाँ
भीनी ख़ुशबू सुलगती साँसों में
अक़्द-नामे