मेरी आँखें और दीदार आप का
या क़यामत आ गई या ख़्वाब है
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बीमार-ए-ग़म की चारागरी कुछ ज़रूर है
लब-ए-नाज़ुक के बोसे लूँ तो मिस्सी मुँह बनाती है
वो फिर वादा मिलने का करते हैं यानी
वो क्या है तिरा जिस में जल्वा नहीं है
उसी के जल्वे थे लेकिन विसाल-ए-यार न था
वहाँ पहुँच के ये कहना सबा सलाम के बाद
एक जल्वे की हवस वो दम-ए-रेहलत भी नहीं
दर्द-ए-दिल कितना पसंद आया उसे
वो कहते हैं मैं ज़िंदगानी हूँ तेरी
कुछ कहूँ कहना जो मेरा कीजिए
ऐ जुनूँ फिर मिरे सर पर वही शामत आई