दर्द-ए-दिल कितना पसंद आया उसे
मैं ने जब की आह उस ने वाह की
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क़तरा वही कि रू-कश-ए-दरिया कहें जिसे
लब-ए-नाज़ुक के बोसे लूँ तो मिस्सी मुँह बनाती है
मिलने वाले से राह पैदा कर
न मेरे दिल न जिगर पर न दीदा-ए-तर पर
वो ख़त वो चेहरा वो ज़ुल्फ़-ए-सियाह तो देखो
तबीअत की मुश्किल-पसंदी तो देखो
दिल दिया जिस ने किसी को वो हुआ साहिब-ए-दिल
बीमार-ए-ग़म की चारागरी कुछ ज़रूर है
एक जल्वे की हवस वो दम-ए-रेहलत भी नहीं
हिर्स दौलत की न इज़्ज़ ओ जाह की
मेरी आँखें और दीदार आप का
ऐ जुनूँ फिर मिरे सर पर वही शामत आई