मिलने वाले से राह पैदा कर
उस से मिलने की और सूरत क्या
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वो कहते हैं मैं ज़िंदगानी हूँ तेरी
वहाँ पहुँच के ये कहना सबा सलाम के बाद
कलेजा मुँह को आता है शब-ए-फ़ुर्क़त जब आती है
सारे आलम में तेरी ख़ुशबू है
तिरे कूचे का रहनुमा चाहता हूँ
बीमार-ए-ग़म की चारागरी कुछ ज़रूर है
उसी के जल्वे थे लेकिन विसाल-ए-यार न था
रविश उस चाल में तलवार की है
किस को देखा उन की सूरत देख कर
इतना तो जानते हैं कि आशिक़ फ़ना हुआ
कुछ कहूँ कहना जो मेरा कीजिए
क़तरा वही कि रू-कश-ए-दरिया कहें जिसे