बीमार-ए-ग़म की चारागरी कुछ ज़रूर है
वो दर्द दिल में दे कि मसीहा कहें जिसे
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वो कहते हैं मैं ज़िंदगानी हूँ तेरी
ख़ुदा से तिरा चाहना चाहता हूँ
कलेजा मुँह को आता है शब-ए-फ़ुर्क़त जब आती है
वो क्या है तिरा जिस में जल्वा नहीं है
ऐ जुनूँ फिर मिरे सर पर वही शामत आई
किस को देखा उन की सूरत देख कर
वो फिर वादा मिलने का करते हैं यानी
दर्द-ए-दिल कितना पसंद आया उसे
मिलने वाले से राह पैदा कर
तिरे कूचे का रहनुमा चाहता हूँ
तबीअत की मुश्किल-पसंदी तो देखो