किस को देखा उन की सूरत देख कर
जी में आता है कि सज्दा कीजिए
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मेरी आँखें और दीदार आप का
उसी के जल्वे थे लेकिन विसाल-ए-यार न था
इतना तो जानते हैं कि आशिक़ फ़ना हुआ
वो कहते हैं मैं ज़िंदगानी हूँ तेरी
बीमार-ए-ग़म की चारागरी कुछ ज़रूर है
क़तरा वही कि रू-कश-ए-दरिया कहें जिसे
तबीअत की मुश्किल-पसंदी तो देखो
एक जल्वे की हवस वो दम-ए-रेहलत भी नहीं
कुछ कहूँ कहना जो मेरा कीजिए
ज़ख़्म-ए-दिल हम दिखा नहीं सकते
ऐ जुनूँ फिर मिरे सर पर वही शामत आई
सारे आलम में तेरी ख़ुशबू है