रियाज़ ख़ैराबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का रियाज़ ख़ैराबादी

रियाज़ ख़ैराबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का रियाज़ ख़ैराबादी
नामरियाज़ ख़ैराबादी
अंग्रेज़ी नामRiyaz Khairabadi
जन्म की तारीख1853
मौत की तिथि1934
जन्म स्थानKhairabad

ज़ेर-ए-मस्जिद मय-कदा में मय-कदे में मस्त-ए-ख़्वाब

ज़र्फ़-ए-वज़ू है जाम है इक ख़म है इक सुबू

ज़रा जो हम ने उन्हें आज मेहरबाँ देखा

ये सुन के आज हश्र में वो बात भी तो हो

ये सर-ब-मोहर बोतलें हैं जो शराब की

ये क़ैस-ओ-कोहकन के से फ़साने बन गए कितने

ये मय-कदा है कि मस्जिद ये आब है कि शराब

ये कम-बख़्त इक जहान-ए-आरज़ू है

ये काली काली बोतलें जो हैं शराब की

वो पूछते हैं शौक़ तुझे है विसाल का

वो जोबन बहुत सर उठाए हुए हैं

वो बोले वस्ल की हाँ है तो प्यारी प्यारी रात

वस्ल की रात के सिवा कोई शाम

उठवाओ मेज़ से मय-ओ-साग़र 'रियाज़' जल्द

उठता है एक पाँव तो थमता है एक पाँव

उन्हीं में से कोई आए तो मयख़ाने में आ जाए

सुना है 'रियाज़' अपनी दाढ़ी बढ़ा कर

शोख़ी से हर शगूफ़े के टुकड़े उड़ा दिए

शेर-ए-तर मेरे छलकते हुए साग़र हैं 'रियाज़'

शैख़-जी गिर गए थे हौज़ में मयख़ाने के

सय्याद तिरा घर मुझे जन्नत सही मगर

रोते जो आए थे रुला के गए

'रियाज़' तौबा न टूटे न मय-कदा छूटे

'रियाज़' एहसास-ए-ख़ुद्दारी पे कितनी चोट लगती है

'रियाज़' आने में है उन के अभी देर

रंग लाएगा दीदा-ए-पुर-आब

रहमत से 'रियाज़' उस की थे साथ फ़रिश्ते दो

क़ुलक़ुल-ए-मीना सदा नाक़ूस की शोर-ए-अज़ाँ

क़द्र मुझ रिंद की तुझ को नहीं ऐ पीर-ए-मुग़ाँ

पीरी में 'रियाज़' अब भी जवानी के मज़े हैं

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