क़ुलक़ुल-ए-मीना सदा नाक़ूस की शोर-ए-अज़ाँ
ठंडे ठंडे दीदनी है गर्मी-ए-बाज़ार-ए-सुब्ह
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इस से अच्छे दश्त-ए-सहरा इस से अच्छे गर्द-बाद
जो पिलाए वो रहे यारब मय-ओ-साग़र से ख़ुश
पाया जो तुझे तो खो गए हम
ये काली काली बोतलें जो हैं शराब की
किसी से वस्ल में सुनते ही जान सूख गई
रहमत से 'रियाज़' उस की थे साथ फ़रिश्ते दो
परा बाँधे सफ़-ए-मिज़्गाँ खड़ी है
'रियाज़' एहसास-ए-ख़ुद्दारी पे कितनी चोट लगती है
इस हज में वो बुत भी साथ होगा
तेज़ है पीने में हो जाएगी आसानी मुझे
वो जोबन बहुत सर उठाए हुए हैं
वो कौन है दुनिया में जिसे ग़म नहीं होता