इस से अच्छे दश्त-ए-सहरा इस से अच्छे गर्द-बाद
आलम-ए-वहशत में मेरा घर कोई घर रह गया
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नहीं छुपता तिरे इ'ताब का रंग
परा बाँधे सफ़-ए-मिज़्गाँ खड़ी है
जफ़ा में नाम निकालो न आसमाँ की तरह
भर भर के जाम बज़्म में छलकाए जाते हैं
मेरे आग़ोश में यूँही कभी आ जा तू भी
आफ़त हमारी जान को है बे-क़रार दिल
बहार आते ही फूलों ने छावनी छाई
उतरी है आसमाँ से जो कल उठा तो ला
हम को 'रियाज़' जानते हैं मानते हैं सब
जो पिलाए वो रहे यारब मय-ओ-साग़र से ख़ुश
हो के बेताब बदल लेते थे अक्सर करवट
सुना है 'रियाज़' अपनी दाढ़ी बढ़ा कर