आफ़त हमारी जान को है बे-क़रार दिल
ये हाल है कि सीने में जैसे हज़ार दिल
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पीरी में 'रियाज़' अब भी जवानी के मज़े हैं
है भी कुछ या नहीं मैं हाथ लगा कर देखूँ
बहार आते ही फूलों ने छावनी छाई
ये सुन के आज हश्र में वो बात भी तो हो
शेर-ए-तर मेरे छलकते हुए साग़र हैं 'रियाज़'
जी उठे हश्र में फिर जी से गुज़रने वाले
जाने वाले न हम उस कूचे में आने वाले
'रियाज़' आने में है उन के अभी देर
बच जाए जवानी में जो दुनिया की हवा से
ख़ुदा के हाथ है बिकना न बिकना मय का ऐ साक़ी
आरज़ू भी तो कर नहीं आती
आबाद करें बादा-कश अल्लाह का घर आज