है भी कुछ या नहीं मैं हाथ लगा कर देखूँ
हाथ उठाए तो ज़रा अपनी कमर से कोई
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रहे हम आशियाँ में भी तो बर्क़-ए-आशियाँ हो कर
पी के ऐ वाइज़ नदामत है मुझे
रहमत से 'रियाज़' उस की थे साथ फ़रिश्ते दो
कोई मुँह चूम लेगा इस नहीं पर
उतरी है आसमाँ से जो कल उठा तो ला
बच जाए जवानी में जो दुनिया की हवा से
किसी का हंस के कहना मौत क्यूँ आने लगी तुम को
ये काली काली बोतलें जो हैं शराब की
ज़रा जो हम ने उन्हें आज मेहरबाँ देखा
मुँह दिखा कर मुँह छुपाना कुछ नहीं
उन के होते कौन देखे दीदा-ओ-दिल का बिगाड़
वा'दा था जिस का हश्र में वो बात भी तो हो