किसी का हंस के कहना मौत क्यूँ आने लगी तुम को
ये जितने चाहने वाले हैं सब बे-मौत मरते हैं
Rahat Indori
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फ़रियाद-ए-जुनूँ और है बुलबुल की फ़ुग़ाँ और
आरज़ू भी तो कर नहीं आती
जो पिलाए वो रहे यारब मय-ओ-साग़र से ख़ुश
'रियाज़' एहसास-ए-ख़ुद्दारी पे कितनी चोट लगती है
बात दिल की ज़बान पर आई
रहे हम आशियाँ में भी तो बर्क़-ए-आशियाँ हो कर
देखिएगा सँभल कर आईना
न आया हमें इश्क़ करना न आया
किस किस तरह बुलाए गए मय-कदे में आज
'रियाज़' तौबा न टूटे न मय-कदा छूटे
कोई मुँह चूम लेगा इस नहीं पर
ज़िद हमारी दुआ से होती है