देखिएगा सँभल कर आईना
सामना आज है मुक़ाबिल का
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ख़ुदा आबाद रक्खे मय-कदे को
रोते जो आए थे रुला के गए
कह के मैं दिल की कहानी किस क़दर खोया गया
लब-ए-मय-गूँ का तक़ाज़ा है कि जीना होगा
पाया जो तुझे तो खो गए हम
ये सीधे जो अब ज़ुल्फ़ों वाले हुए हैं
क्या शराब-ए-नाब न पस्ती से पाया है उरूज
दिल-जलों से दिल-लगी अच्छी नहीं
रूठे हुए कि अपने ज़रा अब मनाए ज़ुल्फ़
उठवाओ मेज़ से मय-ओ-साग़र 'रियाज़' जल्द
भर भर के जाम बज़्म में छलकाए जाते हैं
हमारी आँखों में आओ तो हम दिखाएँ तुम्हें