ख़ुदा आबाद रक्खे मय-कदे को
बहुत सस्ते छुटे दुनिया-ओ-दीं से
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आबाद करें बादा-कश अल्लाह का घर आज
लुट गई शब को दो शय जिस को छुपाते थे बहुत
मेरे आग़ोश में यूँही कभी आ जा तू भी
अहल-ए-हरम से कह दो कि बिगड़ी नहीं है बात
इश्क़ में दिल-लगी सी रहती है
कहाँ ये बात हासिल है तिरी मस्जिद को ऐ ज़ाहिद
ये सर-ब-मोहर बोतलें हैं जो शराब की
हम ने देखा तरफ़-ए-मय-कदा जाते थे 'रियाज़'
पाऊँ तो इन हसीनों का मुँह चूम लूँ 'रियाज़'
बात दिल की ज़बान पर आई
जाने वाले न हम उस कूचे में आने वाले
अगर उन के लब पर गिला है किसी का