ख़ुदा के हाथ है बिकना न बिकना मय का ऐ साक़ी
बराबर मस्जिद-ए-जामे के हम ने अब दुकाँ रख दी
Faiz Ahmad Faiz
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उन के होते कौन देखे दीदा-ओ-दिल का बिगाड़
अगर उन के लब पर गिला है किसी का
दिल-जलों से दिल-लगी अच्छी नहीं
कुछ भी हो 'रियाज़' आँख में आँसू नहीं आते
'रियाज़' आने में है उन के अभी देर
मुँह ज़ेर-ए-ताक खोला वाइज़ बहुत ही चूका
पी के ऐ वाइज़ नदामत है मुझे
रंग लाएगा दीदा-ए-पुर-आब
नज़र आती है दूर की सूरत
मय रहे मीना रहे गर्दिश में पैमाना रहे
'रियाज़' तौबा न टूटे न मय-कदा छूटे
जो उन से कहो वो यक़ीं जानते हैं