रंग लाएगा दीदा-ए-पुर-आब
देखना दीदा-ए-पुर-आब का रंग
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हो के बेताब बदल लेते थे अक्सर करवट
कोई पूछे न हम से क्या हुआ दिल
जिस दिन से हराम हो गई है
गुल मुरक़्क़ा' हैं तिरे चाक गरेबानों के
अहल-ए-हरम से कह दो कि बिगड़ी नहीं है बात
मर कर अरे वाइज़ कोई ज़िंदा नहीं होता
वस्ल की रात के सिवा कोई शाम
डर है न दुपट्टा कहीं सीने से सरक जाए
सुना है 'रियाज़' अपनी दाढ़ी बढ़ा कर
उठवाओ मेज़ से मय-ओ-साग़र 'रियाज़' जल्द
देखिएगा सँभल कर आईना