डर है न दुपट्टा कहीं सीने से सरक जाए
पंखा भी हमें पास से झलने नहीं देते
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रहे हम आशियाँ में भी तो बर्क़-ए-आशियाँ हो कर
हम जानते हैं लुत्फ़-ए-तक़ाज़ा-ए-मय-फ़रोश
ख़ुदा आबाद रक्खे मय-कदे को
है भी कुछ या नहीं मैं हाथ लगा कर देखूँ
गुलों के पर्दे में शक्लें हैं मह-जबीनों की
आफ़त हमारी जान को है बे-क़रार दिल
थी ज़र्फ़-ए-वज़ू में कोई शय पी गए क्या आप
कहाँ ये बात हासिल है तिरी मस्जिद को ऐ ज़ाहिद
तेज़ है पीने में हो जाएगी आसानी मुझे
अगर उन के लब पर गिला है किसी का
मय रहे मीना रहे गर्दिश में पैमाना रहे
थका ले और दौर-ए-आसमाँ तक