कह के मैं दिल की कहानी किस क़दर खोया गया
हैं फ़सानों पर फ़साने मेरे अफ़्साने के बा'द
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डराता है हमें महशर से तू वाइज़ अरे जा भी
पाऊँ तो इन हसीनों का मुँह चूम लूँ 'रियाज़'
क़द्र मुझ रिंद की तुझ को नहीं ऐ पीर-ए-मुग़ाँ
मय-ख़ाने में मज़ार हमारा अगर बना
मिरे घर मिस्ल तबर्रुक के ये सामाँ निकला
पाऊँ तो उन हसीनों के मुँह चूम लूँ 'रियाज़'
अक्स पर यूँ आँख डाली जाएगी
हिन्दोस्ताँ में धूम है किस की ज़बान की
मुँह दिखा कर मुँह छुपाना कुछ नहीं
ये कहाँ से हम गए हैं कहाँ कहें क्या तिरी तग-ओ-ताज़ में
गुलों के पर्दे में शक्लें हैं मह-जबीनों की
ये क़ैस-ओ-कोहकन के से फ़साने बन गए कितने