हिन्दोस्ताँ में धूम है किस की ज़बान की
वो कौन है 'रियाज़' को जो जानता नहीं
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Gulzar
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Faiz Ahmad Faiz
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डराता है हमें महशर से तू वाइज़ अरे जा भी
ये कोई बात है सुनता न बाग़बाँ मेरी
मेरे घर में ग़ैर के डर से कभी छुप जाइए
वो हों मुट्ठी में उन की दिल हो हम हों
जिस दिन से हराम हो गई है
दिल-जलों से दिल-लगी अच्छी नहीं
जवानी मय-ए-अरग़वानी से अच्छी
थी ज़र्फ़-ए-वज़ू में कोई शय पी गए क्या आप
ऐसी ही इंतिज़ार में लज़्ज़त अगर न हो
उठता है एक पाँव तो थमता है एक पाँव
उठवाओ मेज़ से मय-ओ-साग़र 'रियाज़' जल्द
वो कौन है दुनिया में जिसे ग़म नहीं होता