ये क़ैस-ओ-कोहकन के से फ़साने बन गए कितने
किसी ने टुकड़े कर के सब हमारी दास्ताँ रख दी
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
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Jaun Eliya
Wasi Shah
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Gulzar
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'रियाज़' तौबा न टूटे न मय-कदा छूटे
वो कौन है दुनिया में जिसे ग़म नहीं होता
ज़र्फ़-ए-वज़ू है जाम है इक ख़म है इक सुबू
फ़रियाद-ए-जुनूँ और है बुलबुल की फ़ुग़ाँ और
अगर उन के लब पर गिला है किसी का
परा बाँधे सफ़-ए-मिज़्गाँ खड़ी है
मेरे पहलू में हमेशा रही सूरत अच्छी
शैख़-जी गिर गए थे हौज़ में मयख़ाने के
ये सर-ब-मोहर बोतलें हैं जो शराब की
दुनिया से अलग हम ने मयख़ाने का दर देखा
मय-ख़ाने में क्यूँ याद-ए-ख़ुदा होती है अक्सर
हाथ रक्खा मैं ने सोते में कहाँ