पाऊँ तो उन हसीनों के मुँह चूम लूँ 'रियाज़'
आज उन की गालियों ने बड़ा ही मज़ा दिया
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डर है न दुपट्टा कहीं सीने से सरक जाए
जाम है तौबा-शिकन तौबा मिरी जाम-शिकन
छुपता नहीं छपाने से आलम उभार का
हमारी आँखों में आओ तो हम दिखाएँ तुम्हें
रंग लाएगा दीदा-ए-पुर-आब
क्या शराब-ए-नाब न पस्ती से पाया है उरूज
जफ़ा में नाम निकालो न आसमाँ की तरह
वा'दा था जिस का हश्र में वो बात भी तो हो
हम बंद किए आँख तसव्वुर में पड़े हैं
मुँह ज़ेर-ए-ताक खोला वाइज़ बहुत ही चूका
मय-ख़ाने में क्यूँ याद-ए-ख़ुदा होती है अक्सर
निगह-ए-नाज़ इधर है निगह-ए-शौक़ उधर