ये सर-ब-मोहर बोतलें जो हैं शराब की
रातें हैं इन में बंद हमारे शबाब की
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ये काफ़िर बुत जिन्हें दावा है दुनिया में ख़ुदाई का
दिल-जलों से दिल-लगी अच्छी नहीं
उस हुस्न का शैदा हूँ उस हुस्न का दीवाना
उठता है एक पाँव तो थमता है एक पाँव
मुँह ज़ेर-ए-ताक खोला वाइज़ बहुत ही चूका
कोई मुँह चूम लेगा इस नहीं पर
पाऊँ तो इन हसीनों का मुँह चूम लूँ 'रियाज़'
पी ली हम ने शराब पी ली
मिरे घर मिस्ल तबर्रुक के ये सामाँ निकला
ये कम-बख़्त इक जहान-ए-आरज़ू है
डराता है हमें महशर से तू वाइज़ अरे जा भी
मय-ख़ाने में क्यूँ याद-ए-ख़ुदा होती है अक्सर