इस वास्ते कि आव-भगत मय-कदे में हो
पूछा जो घर किसी ने तो का'बा बता दिया
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पैमाने में वो ज़हर नहीं घोल रहे थे
मर कर अरे वाइज़ कोई ज़िंदा नहीं होता
शोख़ी से हर शगूफ़े के टुकड़े उड़ा दिए
ये क़ैस-ओ-कोहकन के से फ़साने बन गए कितने
कोई मुँह चूम लेगा इस नहीं पर
देखिएगा सँभल कर आईना
ये कहाँ से हम गए हैं कहाँ कहें क्या तिरी तग-ओ-ताज़ में
वो कौन है दुनिया में जिसे ग़म नहीं होता
वो हों मुट्ठी में उन की दिल हो हम हों
नहीं छुपता तिरे इ'ताब का रंग
रंग पर कल था अभी लाला-ए-गुलशन कैसा
बड़े पाक तीनत बड़े साफ़ बातिन