इतनी पी है कि ब'अद-ए-तौबा भी
बे-पिए बे-ख़ुदी सी रहती है
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कल क़यामत है क़यामत के सिवा क्या होगा
पर्दे पर्दे में ये कर लेती हैं राहें क्यूँकर
इस से अच्छे दश्त-ए-सहरा इस से अच्छे गर्द-बाद
निगह-ए-नाज़ इधर है निगह-ए-शौक़ उधर
छुपता नहीं छपाने से आलम उभार का
ये कहाँ लगी ये कहाँ लगी जो क़फ़स से शोर-ए-फ़ुग़ाँ उठा
कुछ भी हो 'रियाज़' आँख में आँसू नहीं आते
हम ने देखा तरफ़-ए-मय-कदा जाते थे 'रियाज़'
किस किस तरह बुलाए गए मय-कदे में आज
मेरे घर में ग़ैर के डर से कभी छुप जाइए
मेरे पहलू में हमेशा रही सूरत अच्छी
होगी वो दिल में जो ठानी जाएगी