इस हज में वो बुत भी साथ होगा
ये सच है 'रियाज़' तो गए हम
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देखिएगा सँभल कर आईना
थका ले और दौर-ए-आसमाँ तक
रहे हम आशियाँ में भी तो बर्क़-ए-आशियाँ हो कर
जी उठे हश्र में फिर जी से गुज़रने वाले
नासेह के सर पर एक लगाई तड़ाक़ से
ले उड़े गेसू परेशानी मिरी
हम बंद किए आँख तसव्वुर में पड़े हैं
पी के ऐ वाइज़ नदामत है मुझे
हो के बेताब बदल लेते थे अक्सर करवट
सुब्ह है रात कहाँ अब वो कहाँ रात की बात
हम ने देखा तरफ़-ए-मय-कदा जाते थे 'रियाज़'
कह के मैं दिल की कहानी किस क़दर खोया गया