इज़हार-ए-ग़म किया था ब-उम्मीद-ए-इल्तिफ़ात
क्या पूछते हो कितनी नदामत है आज तक
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Gulzar
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Habib Jalib
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1054) Peoples Rate This
मेरे लिए जीने का सहारा है अभी तक
कभी बे-कली कभी बे-दिली है अजीब इश्क़ की ज़िंदगी
दुनिया को रू-शनास-ए-हक़ीक़त न कर सके
जबीं-ए-नवाज़ किसी की फ़ुसूँ-गरी क्यूँ है
जिस के वास्ते बरसों सई-ए-राएगाँ की है
मुझ को एहसास-ए-रंग-ओ-बू न हुआ
आफ़ियत की उम्मीद क्या कि अभी
फ़ैज़ पहुँचे हैं जो बहारों से
कितने सनम ख़ुद हम ने तराशे
वो करम हो कि सितम एक तअल्लुक़ है ज़रूर
वो भला कैसे बताए कि ग़म-ए-हिज्र है क्या
ख़िज़ाँ-नसीब की हसरत ब-रू-ए-कार न हो