जिस के वास्ते बरसों सई-ए-राएगाँ की है
अब उसे भुलाने की सई-ए-राएगाँ कर लें
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Allama Iqbal
Gulzar
Anwar Masood
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(758) Peoples Rate This
चश्म-ए-सय्याद पे हर लहज़ा नज़र रखता है
मौत के ब'अद भी मरने पे न राज़ी होना
आफ़ियत की उम्मीद क्या कि अभी
गुलों से इतनी भी वाबस्तगी नहीं अच्छी
हज़ारों तमन्नाओं के ख़ूँ से हम ने
हर क़दम पर है एहतिसाब-ए-अमल
है नवेद-ए-बहार हर लब पर
इक फ़स्ल-ए-गुल को ले के तही-दस्त क्या करें
फ़ैज़ पहुँचे हैं जो बहारों से
और ऐ चश्म-ए-तरब बादा-ए-गुलफ़ाम अभी
रानाई-ए-बहार पे थे सब फ़रेफ़्ता