मौत के ब'अद भी मरने पे न राज़ी होना
यही एहसास तो सरमाया-ए-दीं होता है
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रानाई-ए-बहार पे थे सब फ़रेफ़्ता
कभी बे-कली कभी बे-दिली है अजीब इश्क़ की ज़िंदगी
मुझ को दिमाग़-ए-शेवन-ओ-आह-ओ-फ़ुग़ाँ नहीं
अब तो जो शय है मिरी नज़रों में है ना-पाएदार
जब कोई फ़ित्ना-ए-अय्याम नहीं होता है
हाए बे-दाद-ए-मोहब्बत कि ये ईं बर्बादी
वो भला कैसे बताए कि ग़म-ए-हिज्र है क्या
तस्लीम है सआदत-ए-होश-ओ-ख़िरद मगर
और ऐ चश्म-ए-तरब बादा-ए-गुलफ़ाम अभी
इज़हार-ए-ग़म किया था ब-उम्मीद-ए-इल्तिफ़ात
या दैर है या काबा है या कू-ए-बुताँ है
ब-सद अदा-ए-दिलबरी है इल्तिजा-ए-मय-कशी