तस्लीम है सआदत-ए-होश-ओ-ख़िरद मगर
जीने के वास्ते दिल-ए-नादाँ भी चाहिए
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ब-सद अदा-ए-दिलबरी है इल्तिजा-ए-मय-कशी
दुनिया को रू-शनास-ए-हक़ीक़त न कर सके
मेरे लिए जीने का सहारा है अभी तक
ये ग़म नहीं है कि अब आह-ए-ना-रसा भी नहीं
हर क़दम पर है एहतिसाब-ए-अमल
बताए कौन किसी को निशान-ए-मंज़िल-ज़ीस्त
वो करम हो कि सितम एक तअल्लुक़ है ज़रूर
आश्ना जब तक न था उस की निगाह-ए-लुत्फ़ से
जो काम करने हैं उस में न चाहिए ताख़ीर
और ऐ चश्म-ए-तरब बादा-ए-गुलफ़ाम अभी
मुझ को एहसास-ए-रंग-ओ-बू न हुआ
है नवेद-ए-बहार हर लब पर