बताए कौन किसी को निशान-ए-मंज़िल-ज़ीस्त
अभी तो हुज्जत-ए-बाहम है रहगुज़र के लिए
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अपने दामन में एक तार नहीं
अब तो जो शय है मिरी नज़रों में है ना-पाएदार
हज़ारों तमन्नाओं के ख़ूँ से हम ने
है नवेद-ए-बहार हर लब पर
और ऐ चश्म-ए-तरब बादा-ए-गुलफ़ाम अभी
कुछ भी दुश्वार नहीं अज़्म-ए-जवाँ के आगे
या दैर है या काबा है या कू-ए-बुताँ है
जबीं-ए-नवाज़ किसी की फ़ुसूँ-गरी क्यूँ है
तस्लीम है सआदत-ए-होश-ओ-ख़िरद मगर
कभी बे-कली कभी बे-दिली है अजीब इश्क़ की ज़िंदगी
अब बहुत दूर नहीं मंज़िल-ए-दोस्त