अपने दामन में एक तार नहीं
और सारी बहार बाक़ी है
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इज़हार-ए-ग़म किया था ब-उम्मीद-ए-इल्तिफ़ात
वो करम हो कि सितम एक तअल्लुक़ है ज़रूर
हाए बे-दाद-ए-मोहब्बत कि ये ईं बर्बादी
कितने सनम ख़ुद हम ने तराशे
अब बहुत दूर नहीं मंज़िल-ए-दोस्त
हर क़दम पर है एहतिसाब-ए-अमल
जिस के वास्ते बरसों सई-ए-राएगाँ की है
तग-ओ-ताज़-ए-पैहम है मीरास-ए-आदम
इक फ़स्ल-ए-गुल को ले के तही-दस्त क्या करें
आप शर्मिंदा जफ़ाओं पे न हों
रानाई-ए-बहार पे थे सब फ़रेफ़्ता
मुझ को दिमाग़-ए-शेवन-ओ-आह-ओ-फ़ुग़ाँ नहीं