वो करम हो कि सितम एक तअल्लुक़ है ज़रूर
कोई तो दर्द-ए-मोहब्बत का अमीं होता है
Gulzar
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गुलों से इतनी भी वाबस्तगी नहीं अच्छी
ये महर-ओ-माह-ओ-कवाकिब की बज़्म-ए-ला-महदूद
हाए बे-दाद-ए-मोहब्बत कि ये ईं बर्बादी
हर क़दम पर है एहतिसाब-ए-अमल
नवेद-ए-आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार भी तो नहीं
हज़ारों तमन्नाओं के ख़ूँ से हम ने
या दैर है या काबा है या कू-ए-बुताँ है
वो दर्द-ए-इश्क़ जिस को हासिल-ए-ईमाँ भी कहते हैं
तग-ओ-ताज़-ए-पैहम है मीरास-ए-आदम
न हो कुछ और तो वो दिल अता हो
आप शर्मिंदा जफ़ाओं पे न हों
ब-सद अदा-ए-दिलबरी है इल्तिजा-ए-मय-कशी